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डॉ. खूबचंद बघेल - Dr. Khubchand Baghel


डॉ.

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खूबचंद बघेल का जन्म रायपुर जिले के पथरी गांव में 19 जुलाई, 1900 को हुआ था। पिता का नाम जुड़ावन प्रसाद एवं माता का नाम केतकी बाई था। जुड़ावन प्रसाद पथरी के माल गुजार परिवार से थे।
छत्तीसगढ़ महासभा तथा छत्तीसगढ़ भतृसंघ की स्थापना की। इन्होंने "छत्तीसगढ़ का सम्मान" एवं "जनरैल सिंग" नामक नाटक की रचना की थी। 

विवाह:

खूबचंद बघेल का विवाह 10 वर्ष की उम्र में उनसे साल में 3 वर्ष छोटी कन्या राजकुँवर से करा दिया गया था। उनकी पत्नी राजकुँवर से 3 पुत्रियाँ पार्वती, राधा और सरस्वती थी। बाद में उन्होंने पुत्र ना होने के कारण डॉ.

भारत भूषण बघेल को गोद लिया था।


शिक्षा एवं राजनीती:
वर्ष 1920 में नागपुर के राबर्ट्‌सन मेडिकल कालेज में शिक्षा ग्रहण  किया। यहां नागपुर में विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में मेडिकल कोर के सदस्य के रूप में सम्मिलित हुये थे।

स्वतंत्राता सेनानी :
डॉ बघेल महात्मा गांधी से प्रभावित थे। वे अपनी शासकीय नौकरी छोड़कर 1930 में गांधीजी के आन्दोलन में शामिल हो गए। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में इन्हे गिरफ्तार भी किया गया। अपने आंदोलनों के दौरान डॉ बघेल को कई बार जेल भी जाना पड़ा। उन्हें छत्तीसगढ़ का प्रथम स्वप्नदृष्टा भी कहा जाता है।
वर्ष 1931 में "जंगल सत्याग्रह" प्रारंभ हो गया, इसमें शामिल होने डॉ.

साहब ने शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और काँग्रेस के पूर्णकालिक सदस्य बन गये। वर्ष 1951 में काँग्रेस से त्यागपत्र देकर आचार्य कृपलानी के साथ “किसान मजदुर प्रजा पार्टी” से जुड़ गये।

समाजिक कार्य:

पृथक छत्तीसगढ़ :

28 जनवरी, 1956 को डॉ.

खूबचंद बघेल एवं बैरिस्टर छेदीलाल द्वारा राजनांदगाँव में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग के लिए "छत्तीसगढ़ महासभा" का गठन किया गया, जिसके महासचिव दशरथ चौबे थे। वर्ष 1967 में डॉ.

खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में गठित "छत्तीसगढ़ भातृत्व संघ" ने राज्य में जन-जागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया। 25 सितंबर, 1967 को इस संघ की पहली बैठक कुर्मी बोर्डिंग रायपुर में आयोजित की गई, जिसमें छत्तीसगढ़ के लगभग सभी क्षेत्रों से कार्यकर्ताओं की उपस्थिति में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की मांग हेतु शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया।



मृत्यू :
खूबचंद बघेल की मृत्यु 22 फरवरी 1969 को दिल्ली में हुयी थी। खूबचंद बघेल उस समय राज्यसभा सदस्य थे और दिल्ली में ही रहते थे। मौत के बाद उनके पार्थिव शरीर को मालगाड़ी से भिजवाया गया था। जिसका पूरे छत्तीसगढ़ में विरोध हुआ था और इसके बाद ही ये निर्णय लिया गया था कि किसी भी राजनेता के पार्थिव शरीर को हवाई जहाज से ही भेजा जाएगा।